आरक्षण पर जातिवाद हावी
देहरादून देश को आजाद हुए लगभग 72 साल हो गए परंतु जातिवाद का एनाकोंडा अभी भी दिन प्रतिदिन बढ़ता ही चला जाता है और अनुचित वर्ग को अपने मुंह में दबाता चला जा रहा है आज भी अनुसूचित वर्ग के हालात बहुत कम सुधर पाए बड़े शहरों में तो जातिवाद कम है परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में वह छोटे शहरों में इसका मकड़जाल फैलता जा रहा है और आरक्षण खत्म करने की बात करने वाले लोग जातिवाद पर कुछ कहने से बचते रहते हैं यदि जातिवाद को खत्म करने के लिए देशव्यापी आंदोलन चलाया तो जातिवाद कुछ हद तक रुकेगा व समानता अधिकार पाने में बल मिलेगा एक तरफ जहां गांव में व पहाड़ों पर अनुसूचित वर्ग के लोगों को अपनी शादी विवाह में दूल्हे को घोड़ी पर भी बैठाने पर कई तरह के विवाद सामने आ जाते हैं ऐसे में कैसे समानता का स्तर पैदा होगा और कुछ जातिवाद पर कुछ घटनाएं तो ऐसी होती है जो कुर्ता की सारी हदें पार कर देती है जिसको बयान भी नहीं किया जा सकता हमारे बुद्धिजीवी को इस ओर ध्यान देना चाहिए कि जातिवाद कैसे खत्म हो पहाड़ी क्षेत्रोंंं व मैदानी सभी जगह जातिवाद का एनाकोंडा बढ़ता चला जा रहा है व अनुसूचित वर्ग को अपनी चपेट में लेता चला जा रहा है सरकार द्वारा व सामाजिक संगठन द्वारा जातिवाद पर समय-समय पर ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए ताकि जातिवाद जड़ से खत्म हो व अनुसूचित जाति वर्ग का युवा अपने आप को समानता की श्रेणी में खड़ा पाए